अर्थव्यवस्था जगत की आधार भूमि है। इसीलिए भारत में अर्थशास्त्र को धार्मिक के रूप में मान्यता दी गई है । यह ईसाइयत या अन्य कई वजहों की तरह कोई लज्जा का विषय नही है। हालांकि धन को धर्म के मार्ग में रोड़ा बताने वाले ईसाई अपने धर्म को अर्थ के आधार पर ही बढ़ा रहे हैं । इस्लाम के खूनी आतंक के एकदम बढ़ने का कारण भी पेट्रो- धन ही रहा। परन्तु विडंबना है धन और कला को देवत्व के रूप में पूछने वाले हिंदू समाज ने किसी षड्यंत्र के तहत उपेक्षित कर दिया।
हिंदुत्व में येन केन प्रकारेण अन्य मजहबो की तरह विस्तार वादी नीति नहीं रही इसीलिए धन को आधार बनाकर किसी को नष्ट करने या स्वयं का विस्तार करने की प्रगति बन ही नहीं सकी। सभी जानते हैं कि वर्तमान में दुनिया की बड़ी बड़ी कारपोरेट कंपनियां अप्रत्यक्ष रूप से ईसाइयत के विस्तार प्रचार प्रसार यह आतंकवाद के विस्तार में इस्लाम और ईसाइयत को सहयोग कर रही हैं। मानसिक प्रदूषण फैला कर धर्मांतरण या जिहाद की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया जा रहा है हाल ही में तनिष्क द्वारा दिया गया विज्ञापन इसी भावना को व्यक्त करता है।
हो सकता है इसके पीछे किसी जिहादी का षड्यंत्र रहा हो पर बात मूल स्वभाव की है। अभी अभी पारले एवं बजाज द्वारा कुछ चैनलों को विज्ञापन ना देने की घोषणा इसी प्रवृत्ति का अंग है हिंदू समाज को विचार करना होगा सोचना होगा कौन उनके समर्थन में हैं कौन अप्रत्यक्ष रूप से हिंदुत्व पर आर्थिक आक्रमण कर रहा है सवाल किसी एक चैनल की भाषा का नहीं है इतने वर्षों से बॉलीवुड और वामपंथी विचारधारा के चैनल राष्ट्रीयता को खंड खंड करते रहे कभी इन कंपनियों का स्वाभिमान नहीं जगा राष्ट्रीयता की यह हिंदुत्व की फिक्र नहीं हुई पहली बार जब कोई माहौल हिंदुओं के पक्ष में बना तो उसे तोड़ने के लिए आर्थिक आक्रमण की योजना बनाई जा रही है। विचार हिंदू समाज को करना है कि ऐसी कंपनी या कलाकारों को बढ़ावा देना है या नही ।
बजाज या पार्ले को अधिकार है कि वह राष्ट्रवादी चैनल को विज्ञापन ना दें तो हिंदू समाज को भी अधिकार है कि वह ऐसी कंपनियों के प्रोडक्ट को बहिष्कार कर दें, यही एकमात्र उपाय है।
यद्यपि वर्षों से हो रहे भौतिक और मानसिक आक्रमण के कारण आम हिंदू इसको स्वीकार न कर पाए । और आम हिंदू स्वीकार भी करें तो छत में हिंदू इसका विरोध करेंगे।
परंतु इस विषय में सोचना हीं होगा कि जो कंपनियां किसी भी रूप में राष्ट्रीय हिंदू विरोध करेंगी उनका हिंदू समाज खुलेआम बहिष्कार या विरोध करेगा यही एकमात्र रास्ता है जिससे राष्ट्र द्रोहियों पर अंकुश लगाया जा सकता है।
