श्रुतम्-554
युगाब्द ५१२४, विक्रम संवत् २०७९
वैशाख मास, शुक्ल पक्ष, सप्तमी
रविवार, 8 मई, 2022
हिंदुत्वः
आश्रम व्यवस्था-14
मनुष्य की आयु 100 वर्ष मानी गई है। इस पूरी आयु को समान 4 भागों में विभाजित किया गया है:-
पहले 25 वर्ष कठोर संयमित जीवन व्यतीत कर विद्या अध्ययन करना, इसे ब्रह्मचर्य आश्रम कहते हैं।
दूसरे 25 वर्ष- विवाह करना तथा शरीर, बुद्धि व मन से श्रेष्ठ संतान उत्पन्न कर वंश वृद्धि हेतु परिवार बसाना, इसे गृहस्थाश्रम कहते हैं।
जीवन के तीसरे भाग, अर्थात् 51 से 75 वर्ष की आयु तक वानप्रस्थ आश्रम में रहना, अर्थात् लोक कल्याण तथा समाज सेवा में 25 वर्ष बिताना। जिस समाज से अपने लिए अब तक जो कुछ लिया, उसे समाज में बांटना। यह समाज और राष्ट्र ऋण से उऋण होने का समय होता है।
जीवन के चौथे व अंतिम भाग में संन्यास आश्रम में प्रवेश कर सांसारिक मोह-माया से परे रहकर प्रभु के ध्यान में जीवन बिता देना।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि चार आश्रमों में ब्रह्मचर्याश्रम, गृहस्थाश्रम तथा वानप्रस्थाश्रम के बाद ही संन्यासाश्रम आता है।
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