कन्यादान दान का विज्ञान
अंग्रेज़ी भाषा में मुख्यतः दान को तीन शब्दों में लिखते हैं ।
- Sacrifice
- Charity
- Donation
जैसे एक अंग्रेज सैनिक युद्ध में मारा जाता है तब उसे supreme Sacrifice कहा जाता है । यदि वह बाईबिल के आधार पर और इन्फड्ल को मारते हुए मरता है तब उस martyrdom कहते हैं । हम यहाँ Supreme Sacrifice पर ही केंद्रित रहेगें ।
Charity : इसाइयत के लिए और इसाईयों के लिए किया गया काम Charity कहलाता है ।इसमें God का मैन से प्यार और मैन का God से प्यार , सन्निहित होता है ।
Donation : स्व इच्छा से वस्तु या द्रव्य का दिया जाना जिससे दूसरे व्यक्ति या समूह को लाभ पहुँचा , donation कहा जाता है ।
तो जैसे आप ब्लड डोनेशन करते हैं उसे ब्लड चैरिटी नहीं कहा जा सकता । और मदर टेरेसा की संस्था जो काम करती थी वह चैरिटी के अन्दर आता था । धर्म परिवर्तन या मिशन के रूप में किसी संस्था द्वारा किताब बाँटना , दवाई बाँटना जिसमें गॉड जी हों , चैरिटी का काम है ।
इस रूपरेखा को समझाना आवश्यक था क्योंकि हम लोग अनुवाद खोर हो चुके हैं । संस्कृत भाषा में भी तीन शब्द होते हैं पर तीनों का अर्थ नितांत भिन्न है ।
Sacrifice का अनुवाद त्याग है पर एक सैनिक के Supreme Sacrifice को हम त्याग नहीं कहते । हम कहते हैं बलिदान ।क्यों ? क्योंकि त्याग और दान , स्थूल रूप से एक जैसे दिखते हैं पर होते नितांत भिन्न हैं ।दान , आप जिस वस्तु का करते हैं वह आपके लिए महत्वपूर्ण होती है । और त्याग आप जिस वस्तु का करते हैं वह वस्तु आपके लिए महत्वपूर्ण नहीं होती है , अर्थात् वह तुच्छ होती है ।
जैसे किसी ने संसार को छोड़कर, संन्यास ले लिया तो कहा जाएगा की अमुक संसार को त्याग दिया । यह नहीं कहा जाएगा की उन्होंने संसार का दान कर दिया ।
तो पुन: दुहरा देता हूँ , त्याग आप उस वस्तु का करते हैं जिसका आपके जीवन में कोई उपयोग नहीं है और दान आप उस वस्तु का करते हैं जिसका आपके जीवन में बहुत महत्व है ।
तो , रक्तदान होता है क्योंकि रक्त आपके लिए महत्वपूर्ण है और मल त्याग करते हैं क्योंकि भोजन पचने के बाद बचा हुआ मल आपके शरीर के किसी काम का नहीं है ।और आपके सामने कोई भिखारी या कोई भूखा है तथा आप उसको रोटी या कुछ रूपए देते हैं तब उसे दया ( kindness) कहते हैं ।
दया आप किसी पर भी कर सकते है , मनुष्य, पशु , पंक्षी , पेड़ , पौधे या शत्रु पर भी परन्तु दान केवल सुपात्र को किया जा सकता है । अर्थात् दान में , दान लेने वाला भी बहुत मुख्य होता है । हरी चद्दर पर या मज़ार पर जो पैसा आप चढ़ाते हैं उसे मूर्खता कहा जाता है । क्योंकि वह धन कुपात्र पर जाकर पुनः आपको संकट में डाल सकता है ।
अब वह आई पी एस साहब जिन्होंने कन्यादान के लिए अपने कन्या की तुलना टीवी फ्रिज से करी तो उनके लिए टीवी फ्रिज ही महत्वपूर्ण है, उनकी कन्या नहीं ।
यदि आप सनातन धर्मी हैं और आपकी कन्या आपको अपने जीवन से भी अधिक मूल्यवान लगती है तब आप उसके लिए सर्वोत्तम वर ढूढ़कर कन्यादान करेंगे । अर्थात् जब बलिदान से भी बड़ा आपके लिए कन्यादान दिखेगा और कन्या आपको अपना हृदय लगेगी तब ही यह बात समझ में आएगी ।
विवाह , सनातन धर्म में कांट्रेक्ट, एग्रीम्ंट समझौता नहीं है । यह दम्पति बनाने की विधि है और कन्या को टी वी फ्रिज समझते हैं तो उसके लिए हमारे शास्त्रों को भला बुरा न कहें अपने मैकाले चचा को धन्यवाद दें ।