कांशी का रहस्य
कांशी को महादेव की नगरी माना जाता है यह भी प्रचलित है कि जो कांशी मे मृत्यु को प्राप्त होता है वह स्वर्ग मे वास करता है ।
तंत्र मे कांशी का अर्थ यह किरात रेखा ही है नाक के बिन्दू से चन्द्रमा तक जाने वाली मध्य रेखा ।यह शिव के त्रिशुल का मध्य शुल्क है । इसलिए कहते है कि प्रलय से समय कांशी को महादेव अपने त्रिशुल पर उठा लेते है।
तंत्र मे इसी कांशी मे ध्यान को लगाकर आरे की तरह चला कर यह साधना की जाती है जब चन्द्रमा से दोनो ओर नीचे तक नासिका गर्दन की हड्डी का उपरी बिन्दु पर पूर्ण मानसिक घर्षण से खुल जाता है यह कुण्ड का अर्थ चन्द्रमा का गडढा है
इससे जो चमत्कारिक शक्तियाँ प्राप्त होती है यह अवर्णनीय है इसके साथ ही अन्तर्दृष्टि बढ़ती है अन्तर्गतज्ञान बढता है परमात्मा की अनुभूति होती है जिससे परमानन्द की प्राप्ति होती है यही किरात साधना कहलाती है ।
यह भी तंत्र विधा की एक अत्यन्त गोपनीय सिद्धि है इसकी महिमा भी ब्रह्म एवं मुक्ति की प्राप्ति से सन्दर्भ मे है । वैसे इससे अतीन्द्रीय अनुभूतिया भविष्य दर्शन सम्मोहन तेज प्रभा औरा वृद्धि भाव फलित आदि चमत्कारिक शक्तियाँ प्राप्त होती है ।
जीवन शक्ति बढ़ जाती है । सम्भवतः नवयौवन और कायाकल्प की विधियों मे भी इनका महत्व है।परन्तु जिस अमृत तत्त्व, मूल तत्त्व, परमात्मा तत्त्व, की प्राप्ति इससे होती है।
उससे सभी कुछ सम्भव है, असम्भव भी सम्भव हो सकता है कारण यह है कि इस ब्रह्माण्ड मे जितने गुणों का प्रत्यक्ष हो रहा है भूतकाल मे हो रहा था या भविष्य मे होने वाला होगा सब इसी तत्त्व से उत्पन्न होता है।
यह विलक्षण तत्त्व स्वयं ही परिपथ बनाता है स्वयं ही उसके मध्य नाभिक उत्पन्न करता है और इस प्रज्वलित परमाणु को पम्प करता हुआ ब्रह्माण्ड बना देता है।किरात साधना भी इसी तत्त्व की साधना है और इसका ध्यान बिन्दू वही है जो कपाल सिद्धि का है कपाल सिद्धि भी इसी को प्राप्त करने की साधना है