“कुरान की छब्बीस आयतें आतंकवाद का कारण हैं।” ये कहना है वसीम रिजवी का। इसे लेकर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल किया है।
लेकिन जनहित याचिका दाखिल होने के बाद जिस तरह से मुसलमान बौखलायें हैं उसे देखकर लगता है कि कहीं कोई सच्चा मुसलमान रिजवी की हत्या न कर दे।
मुसलमान पाथर तो नहीं पूजता लेकिन उसकी अपनी मजहबी मान्यताएं किसी पाथर से भी कठोर होती हैं। वो भला कैसे बर्दाश्त कर पायेगा कि उनके बीच से कोई उस कुरान में 26 आयतें हटाने की वकालत करे जिसमें एक हर्फ भी नहीं बदला जा सकता।
मुसलमान अपनी मान्यताओं का मारा हुआ है। वह मान्यताओं में एक रत्ती भर समझौता नहीं करता। ये सारी मान्यताएं उसे उसी किताब से मिलती हैं जिसमें संशोधन की बात रिजवी ने सुप्रीम कोर्ट में किया है। मैं नहीं जानता कि उन्होंने किन आयतों का हवाला दिया है लेकिन ऐसी आयतें जानता हूं जो गैर मुस्लिम की हत्या करने तक की इजाजत देती हैं। मुसलमान कभी इन आयतों का उल्लेख नहीं करता। पालन भी नहीं करता लेकिन जो आतंकवाद की फैक्ट्री चलाते हैं वो इन्हीं आयतों का सहारा लेकर काफिरो मुशरिक को कत्ल करने के लिए मुजाहिद तैयार करते हैं।
भारत के मुसलमान चाहे जो प्रतिक्रिया दें लेकिन सऊदी अरब भी इस दिशा में सोच रहा है। उनका मानना है कि कुरान में कुछ गलतियां हैं जिन्हें ठीक करने का वक्त आ गया है। ये गलतियां क्या हैं, ये तो जब वो ठीक करेंगे तब दुनिया को पता चलेगा लेकिन इधर वसीम रिजवी ने बर्र के छत्ते में हाथ ही नहीं डाला, पूरा सिर दे दिया है। अल्लाह उनके सिर की हिफाजत करें।