जिस देश के सुप्रीम कोर्ट में 70 हजार, हाईकोर्टों में 58 लाख समेत अन्य न्यायालयों में लगभग 4.5 करोड़ मुकदमे लंबित हैं। उस देश के सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को यह चिंता परेशान कर रही है कि कॉलेजों में बड़ी नेतागिरी करने वाले लडको की संख्या कम क्यों हो रही है.?
4.5 करोड़ मुकदमे लंबित होने का अर्थ है कि देश के 9 करोड़ लोग मुकदमेबाजी में उलझे हैं।
एक परिवार में औसतन 5 सदस्य मान लीजिए तो देश की लगभग 45 करोड़ (33%) आबादी की जिंदगी मुकदमेबाजी के जंजाल में उलझी हुई है। अदालतों के चक्कर काटते हुए गुजर रही है। लेकिन देश के सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को यह चिंता परेशान कर रही है कि कॉलेजों में बड़ी नेतागिरी करने वाले लडको की संख्या कम क्यों हो रही है.?
आप स्वंय सोचिए, स्वंय तय करिए कि देश की वर्तमान न्यायिक व्यवस्था में देश के सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की यह चिंता, यह प्राथमिकता कितनी प्रासंगिक कितनी उचित है.?