जब भारतीय योद्धाओं की जरूरत पश्चिमोत्तर और अफगानिस्तान में थी उस समय उनपर ध्यान केंद्रित करने की जगह राष्ट्रकूटों को प्रतिहारों से लड़ने में मजा आ रहा था।
अरबी यात्रियों के अनुसार नौ लाख और तार्किक अनुमान के अनुसार प्रतिहारों के तीन लाख सैनिक नर्मदा पर राष्ट्रकूटों से लड़ने में व्यस्त रहते थे।यानि लगभग छः लाख राजपूत एक ऐसे खूनी युद्ध में एक दूसरे का खून बहा रहे थे जिसका कोई भी फायदा नहीं हो रहा था सिवाय मूँछें ऐंठने के। समूचे विश्व इतिहास में शौर्य का ऐसा अपव्यय कहीं नहीं हुआ जैसा राजपूतों के इन संघर्षों में।
राजपूत युग में शौर्य के इस निरर्थक अपव्यय ने मुस्लिम आक्रांताओं का मार्ग खोल दिया था। हल्दीराम पर अरबी लिपि में लिखे पर विवाद और शाकाहार-मांसाहार पर विवाद कुछ ऐसा ही है। कश्मीर फाइल्स से उत्पन्न जागरूकता और क्रोध का अपव्यय किया जा रहा है। अगर हलाल सर्टिफिकेट व्यवस्था के विरुद्ध आंदोलन चलाया जाता,मु स्लिमों के आर्थिक बहिष्कार का आंदोलन चलाया जाता, अजान के लिए लाउड स्पीकर के विरुद्ध आंदोलन चलाया जाता, स्कूलों में समान ड्रेस व हिजाब बैन के विरुद्ध आंदोलन चलाया जाता, तभी यह ऊर्जा सही दिशा में काम कर पाती पर…….गुस्से को पालना ही काफी नहीं है, उसे सही जगह पर खर्च करना सीखो ।।