जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहीं ।।
प्रेम न बाड़ी नीपजै, प्रेम न हाट बिकाय ।।
राजा प्रजा जेहि रुचे सीस देय लै जाय ।।
कहते हैं कि संसार की दृष्टि में बिल्कुल निकम्मा होना पडता है, तब रास्ता तय होता है प्रेम का 💓
सोचिए एक न एक दिन तो सब छूटेगा ही , फिर इससे बड़ी मूर्खता क्या होगी कि हम ऐसे नश्वर पदार्थो के पीछे अनमोल जीवन व्यर्थ खो देते हैं, यह विषय अनादिकाल से मन में धँसे हुए हैं, इसलिए मन एक बार भी भगवान में नहीं लगा
भजन में मन लगा नहीं और समझ लिजिए जिस दिन लगा तो बस सारे विषय नष्ट हुए, यह अकाट्य नियम है कि मन में मन से एक ही काम होगा या तो श्रीकृष्ण का चिंतन या विषयों का चिंतन 💓
प्रेम गली अति सांकरी ता में दो न समाहिं ।।
और जब श्रीकृष्ण का प्रेम इस मन की गली में समा जाता है अर्थात श्रीकृष्ण से प्रेम हो जाता है तो फिर किसी भी विषयों की कोई आसक्ति नहीं रहती, स्वयं से भी नहीं🍃
प्रेम स्वरूपिनी श्री राधारानी की जय
अपने अपने गुरुदेव की जय
श्री कृष्णाय समर्पणं
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II HARE KRISHNA II