जस्टिस बदरूल इस्लाम…
असम का निवासी…
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई की
असम में प्रैक्टिस की…
1962 से 68 तक कोंग्रेस ने इसे राज्यसभा भेज दिया…
68 के बाद इसे फिर कोंग्रेस ने राज्यसभा भेज दिया, इस कार्यकाल को पूरा होने का समय था 1974 किंतु 1972 में कोंग्रेस ने इस से इस्तीफा लेकर इसे गुवाहाटी हाई कोर्ट का जज बना दिया…
यानी सीधे कोंग्रेस सांसद के पद से हाई कोर्ट का जज बन गया…
7 जुलाई 1979 मार्च 1980 तक हाई कोर्ट का जज बना रहा…
रिटायर होने के बाद इसे सुप्रीम कोर्ट का जज बना दिया गया…
और इस बार प्रधानमंत्री थी।इंदिरा गांधी…
क्या भारतीय इतिहास में ऐसा अन्य कोई उदाहरण है जिसमे हाई कोर्ट का जज रिटायर होने के बाद सुप्रीम कोर्ट का जज बना हो??
कहानी अभी बाकी है मेरे दोस्त…
जज की कुर्सी संभालते ही उसने सब पहला निर्णय बिहार के मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा को अर्बन को ऑपरेटिव घोटाले से बरी करना, समझ गए ना इसे सुप्रीम कोर्ट का जज क्यों बनाया गया ओर किसने बनवाया…
पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त…
जगन्नाथ मिश्रा को घोटाले से बरी करने के एक माह बाद इस जज ने सुप्रीम कोर्ट से अचानक इस्तीफ़ा दे दिया…
जबकि कार्यकाल अभी भी लगभग 50 दिन का शेष था…
माने इसको 13 जनवरी 1983 को रिटायर होना था
इस्तीफा क्यों दिया…
क्योंकि 19 जनवरी विधानसभा नामांकन की अंतिम दिनांक थी
समझ रहे हो खेल कैसे खेला जाता था और कौन खेल रहा था और मोहरा एक मज़हब विशेष से संबंध रखता था…
इसे बारबेटा से कोंग्रेस का उम्मीदवार बनाया गया…
पर किसी कारण से ये चुनाव लड़ नही सका
अभी बाकी है दोस्तों…
15 जून 1983 को कोंग्रेस ने इसे फिर राज्यसभा से सांसद बना दिया…
इतना ड्रामा देश मे हो रहा था पर किसी लिब्राण्डु, कोंग्रेसी ने सवाल नही उठाया क्यों?
तो क्यों सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज अरुण कुमार मिश्रा को मानवाधिकर आयोग का अध्यक्ष बनाने पर लिब्राण्डु, कोंग्रेसी क्यों छाती पीट पीट कर विधवा विलाप कर रहे हैं?
