:-: डिग्री या उपाधि :-:
जिस प्रकार आज जिस किसी ने भी जिस विषय में कोई पढ़ाई की हो,उसके पास उस विषय से सम्बंधित डिग्री होना चाहिए, डिग्री होने पर ही वह सबके सामने अपने आपको उस डिग्री से पढ़ा लिखा बोल व बता सकता हैं और जिसके पास सम्बंधित विषय में डिग्री नहीं हैं और अगर वह अपने आप को उस डिग्री वाला बताये,तो यह कृत्य धोखाधड़ी में आता हैं।ठीक इसी प्रकार ही हमारे सनातन धर्म में जो कोई व्यक्ति जिस विषय में रुचि लेकर,उस विषय का अध्ययन करता था,तो उसे उपाधि यानि डिग्री प्रदान की जाती थी और वह व्यक्ति उस उपाधि को अपने नाम के आगे या पीछे लगाने में स्वतंत्र था,जैसे कोई व्यक्ति किसी विषय में पारंगत हो गया,मतलब की उसने phd की डिग्री उस विषय में ले ली,तो वह अपने नाम के आगे पीछे पंडित लगा सकता हैं।पंडित का मतलब किसी विधा में पारंगत होना और आगे उसके बच्चों ने भी किसी विधा में phd की ,तो वो भी अपने नाम के आगे पंडित लगाए,अन्यथा नहीं।यह लाखों वर्षो से चला आ रहा सनातन शिक्षा तंत्र था,जिसे नष्ट करके मिशनरी एजुकेशन सिस्टम लाया गया और उपाधियों यानि कि डिग्रियों को जाति कहकर प्रचारित किया ,जिससे लोगों को आपस में लड़वाया जा सकें।सभी सनातनी भारतीय जातियां अपने अपने विषय में पारंगत थी,इसलिये भारत विश्व गुरु था।भारतीय जाति और वर्ण व्यवस्था को पुनर्स्थापित होने का समय निकट हैं।
धन्यवाद :- बदला नहीं बदलाव चाहिए
