डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी मानवता ओर सांस्कृतिक भारत के उपासक थे- शवेता
आज डॉ मुखर्जी का बलिदान दिवस है।आज ही के दिन कश्मीर जेल में उनकी मृत्यु हुई थी।1901में जन्मे मुखर्जी शिक्षा संस्कृति विधि सामाजिक समस्याओं के गहरे जानकर थे।1942 में ये बंगाल सरकार मुस्लिम लीग के नेतृत्व में बनी उसमें शामिल रहे।जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष रहे मुखर्जी बैरिस्टर भी रहे अपने पिता आशुतोष मुखर्जी की तरह।कलकत्ता विश्वविद्यालय कुलपति ओर नेहरू मंत्री मंडल में वाणिज्य मंत्री भी रहे।सावरकर जी से प्रभावित होकर हिन्दू महासभा में भी रहे।भारत विभाजन के मुद्दे पर रास्ट्रीय कांग्रेस नेतृत्व से इनके गहरे मतभेद रहे।
राजनीतिक समीक्षक मानते है इन्हें भी डॉ राम मनोहर लोहिया की तरह मंत्री मंडल में शामिल नही होना चाहिए था।हिन्दू महासभा कभी मुख्यधारा की पार्टी नही रही आजादी के आंदोलन में।
राष्ट्रवाद के प्रबल समर्थक रहे संविधानसभा सदस्य मुखर्जी 370 अनुच्छेद हटाने के लिए कश्मीर राजनीतिक यात्रा पर निकले थे।अन्तोगत्वा रहस्यमयी मृत्यु भी जेल में ही हुई।वर्तमान सरकार चाहे तो रहस्य खुल सकता है।
भारतीयों को एक ही रक्त से पैदा हुए भाई ही मानते थे।धर्म के आधार पर विभाजन को दुर्भाग्यपूर्ण बताया था।
संपादक शवेता दर्पण की शवेता रस्तोगी स्वतंन्त्र पत्रकार होने के नाते कहते है या कह सकती हूँ।कि धर्म जाति क्षेत्र भाषा के आधार आचार व्यवहार नही किया होता नेताओ ओर लोक सेवको ने तो 2021 में भारत की तश्वीर अलग ही होती।
डॉ लोहिया,आचार्य नरेंद्र देव,सरदार भगतसिंह जैसे लोग केवल अंग्रेजो को भारत से निकालने की लड़ाई को स्वतंत्रता संग्राम नही कह रहे थे।ये कहते थे गोर अंग्रेजो के जाने के बाद भी भारत मे शोषण अत्याचार गुलाम मानसिकता अन्याय जिंदा रहेगा।स्वत्रन्त्र प्रेस नही होगी।जैसी अंग्रेजो के वक्त भी नही थी।साम्प्रदायिकता,जातिवाद,छुआछूत आज भी है।उस वक्त भी थी।
न्यायपूर्ण समाज रचना डॉ मुखर्जी भी चाहते थे।मानवाधिकार के प्रबल समर्थक विधि विशेषज्ञ रहे।और आज मै भी संयुक्त राष्ट्र चार्टर,संविधान में आस्था रखते हुए।संवेधानिक भारत बनाने का संकल्प दोहराती हूँ।और इसके लिए जीवन पर्यन्त जनमत तैयार करती रहूंगी।
