ड्रिप इरिगेशन :-
आधुनिक विज्ञान में पेड़ पौधों को धीरे धीरे प्लास्टिक की नलियों के माध्यम से पानी देने की प्रक्रिया को ड्रिप इरिगेशन कहा जाता हैं, इसके माध्यम से पेड़ पौधों को पानी भी अच्छे से मिलता हैं और पानी की बर्बादी भी कम होती हैं।हमारे सनातन परंपरा में पीपल,बरगद जैसे पेड़ जो कि कम पानी वाली जगह पर उगते हैं और मिट्टी को बांधे रखते हैं, उन्हें पानी की बहुत आवश्यकता होती हैं, इसलिये हमारे पूर्वजों ने नियम बनाया कि ऐसे पेड़ो चारों तरफ जनेऊ या कलावा लपेटों और उस पर हल्दी का लेप भी लगा सकते हो और फ़िर उस पर जल चढ़ाओ।यह तरीका आप आज भी लोगों को करते हुए देख सकते हो।जनेऊ या कलावा में बहुत सारे रेशेदार धागे होते हैं, जिन पर पानी डालने पर वो पानी को सोख लेते हैं और धीरे धीरे पानी को पेड़ो तक आसानी से पहुँचाते हैं और हल्दी मिले होने से पेड़ पर लगे हानिकारक बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं।यहीं कारण हैं कि पहले पीपल, बरगद जैसे पेड़ बहुत लंबा जीते थे,लेकिन आजकल इस परंपरा को पाखंड मानने के कारण,ये पेड़ जल्दी मर जाते हैं।कलावा बांधने को ही आधुनिक विज्ञान के रूप में ड्रिप इरीगेशन तकनीक कहते हैं।कलावा से पर्यावरण को कोई हानि नहीं ,लेकिन ड्रिप इरीगेशन में उपयोग हुई प्लास्टिक की नलियों का पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ता हैं।सनातन परंपरा में सब विज्ञान हैं।
धन्यवाद :- बदला नहीं बदलाव चाहिए