✍🏼 राम राम जी🌹
तीसरी रोटी
रामेश्वर ने पत्नी के जाने के बाद अपने हम-उम्र दोस्तो के साथ सुबह-शाम पार्क में टहलना और गप्पें मारना, साथ ही पार्क के समीप के मंदिर में दर्शन करना को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लिया था। हालांकि घर में उन्हें किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं थी। सब उनका बहुत ध्यान रखते थे।
आज सभी चुपचाप बैठे थे एक दोस्त को वृद्धाश्रम भेजने की बात से सभी दुखी थे।
“आप लोग हमेशा पूछते थे कि मैं भगवान से तीसरी रोटी क्यों मांगती हूँ आज बतलाती हूँ।”
“क्या बहू तुम्हें तीन रोटी ही देती है या सिर्फ तीसरी…”
उत्सुकता से कमल ने पूछा।
“नहीं यार! ऐसी कोई बात नहीं है, बहू बहुत अच्छी है।”
तुम जानना चाहते थे रोटी कितने प्रकार की होती हैं, तो मेरा मानना है कि-
“रोटी चार प्रकार की होती है। पहली सबसे स्वादिष्ट रोटी माँ की ममता और वात्सल्य से भरी। जिससे पेट तो भर जाता है पर मन कभी नहीं भरता।”
“सोलह आने सच, पर शादी के बाद माँ की रोटी कम ही मिलती है।”
“हाँ, वही तो, दूसरी रोटी पत्नी की होती है। जिसमें अपनापन और समर्पण भाव होता है, जिससे पेट और मन दोनों भर जाते हैं।”
“क्या बात कही है यार ?”
ऐसा तो कभी हमने सोचा ही नहीं, फिर तीसरी रोटी किसकी होती है।”
“तीसरी रोटी बहू की होती है जिसमें सिर्फ कर्तव्य भाव होता है, जो पेट भर देती है और वृद्धाश्रम से भी बचाती है।”
थोड़ी देर के लिए चुप्पी छा जाती है।
“चौथी रोटी किसकी होती है।”
मौन तोड़ते हुए कमल ने पूछा।
“चौथी रोटी नौकरानी की होती है। जिससे न पेट भरता है न ही मन। और स्वाद की तो कोई गारंटी नहीं।”
सबके हाथ तीसरी रोटी के लिए जुड़ गये।
हो सकता है आप भी इस प्रसंग से सहमत हो!!
मेरा मानना है सभी रूपों में भगवान ही हमें रोटी खिलाता है, फर्क सिर्फ यह है कि वह हमारे समर्पण के आधार पर ही अपना स्वरूप बदलता रहता है।
मैंने चौथी और तीसरी रोटी में भी पहली और दूसरी रोटी के स्वाद का अनुभव करके देखा है।