तुच्छ सुख
एक आदमी ऊँट से तुच्छ सुखट पर चढ़कर अपने गाँव जा रहा था ।
रात्रि के समय वह एक गाँव में पहुँचा। वहाँ एक जगह ब्याह हो रहा था, ढोल-बाजे बज रहे थे । वह आदमी ब्राह्मण था ।
उसने वहाँ जाकर देखा तो पता चला कि ‘भूर’ बँटनेवाली है । ‘भूर’ को संस्कृतमें भूयसी (विशेष) दक्षिणा कहते हैं, जो ब्याहके समय ब्राह्मणोंको दी जाती है ।
वह ब्राह्मण ऊँटको बाहर खड़ा करके ‘भूर’ लेने के लिये भीतर चला गया ।
चोरों ने ऊँट को बाहर देखा तो वे उसको भगाकर ले गये । इधर ‘भूर’ बँटी तो सब ब्राह्मणोंको चार-चार आना मिले ।
चार आने लेकर वह ब्राह्मण बाहर आया तो देखा कि ऊँट नहीं है !
इधर चार आने मिले और उधर चार-पाँच सौ रुपयोंका ऊँट गया !
इस तरह संसारमें तो तुच्छ सुख मिला, थोड़ा धन मिल गया, थोड़ा मान मिल गया, थोड़ा आदर मिल गया, थोड़ा बढ़िया भोजन मिल गया, पर उधर ऊँट चला गया‒परमात्माकी प्राप्ति चली गयी ।
यह दशा है‒तुच्छ सुख में महान् सुख जा रहा है ।