तेरी बुराइयों को हर अख़बार कहता है,और तू मेरे गांव को गँवार कहता है //
ऐ शहर मुझे तेरी औक़ात पता है /तू चुल्लू भर पानी को भी वाटर पार्क कहता है //
थक गया है हर शख़्स काम करते करते /तू इसे अमीरी का बाज़ार कहता है।
गांव चलो वक्त ही वक्त है सबके पास !!तेरी सारी फ़ुर्सत तेरा इतवार कहता है //
मौन होकर फोन पर रिश्ते निभाए जा रहे हैं //तू इस मशीनी दौर को परिवार कहता है //
जिनकी सेवा में खपा देते थे जीवन सारा,तू उन माँ बाप को अब भार कहता है //
वो मिलने आते थे तो कलेजा साथ लाते थे,तू दस्तूर निभाने को रिश्तेदार कहता है //
बड़े-बड़े मसले हल करती थी पंचायतें //तु अंधी भ्रष्ट दलीलों को दरबार कहता है //
बैठ जाते थे अपने पराये सब बैलगाडी में //पूरा परिवार भी न बैठ पाये उसे तू कार कहता है //
अब बच्चे भी बड़ों का अदब भूल बैठे हैं // तू इस नये दौर को संस्कार कहता है .//
🙏🌹 सादर अभिवादन 🌹🙏
संपादक
अशोक पटेरिया
छतरपुर