:-: दक्षिण दिशा :-:
सनातन संस्कृति में दक्षिण दिशा मिश्रित गुणों वाली हैं जैसे:-
- पृथ्वी पर खड़े होकर,जिस तरफ दक्षिण दिशा की ओर मुंह करें, तो ब्रह्मांड के बाहर,दक्षिण दिशा में यमलोक हैं, जहाँ से जीवात्माओं का आना जाना लगा होता हैं, इसलिये तर्पण,पिंडदान आदि कर्मकांड दक्षिण की ओर मुंह करके किए जाते हैं।
- पूर्व,पश्चिम,उत्तर के अपेक्षाकृत दक्षिण दिशा में सूर्य के प्रकाश का प्रभाव कम और अल्प समय के लिये रहता हैं, इसलिये वास्तुशास्त्र में दक्षिणमुखी प्लॉट या घर अशुभ माना जाता हैं, सूर्य का प्रकाश कम मिलने से विषाणु अधिक पनपते हैं,जिससे व्यक्ति सुख शांति से नहीं रह पाता हैं।
- सार्वजनिक जीवन यानि समाज या देश या राज्य का दक्षिण क्षेत्र ,दूसरें अन्य क्षेत्रों से समृद्ध होता हैं,बड़े क्षेत्र के लिए दक्षिण दिशा शुभ होती हैं जैसे दक्षिण भारत हो या दक्षिण भोपाल या दक्षिण कोरिया हो या दक्षिण अमेरिका।
- दक्षिण दिशा में बहुआयामी तरंगों का आवागमन अधिकतर चलता ही रहता हैं, इसलिये दक्षिण दिशा की ओर सिर रखकर सोने से अच्छी नींद नहीं आती,जिससे व्यक्ति चिड़चिड़ा होकर अशांत हो जाता हैं, और अपने पतन को प्राप्त करता हैं।
मनुस्मृति के शासन काल तक लोग़ सभी शुभ या अशुभ कार्य दिशानुसार करते हैं।आधुनिक विज्ञान को दिशा ज्ञान न होने के कारण ,किसी भी दिशा में कुछ भी निर्मित किया गया,इसलिये संसार से सुख शांति का लोप हो गया ।जीत सत्य की होगी।
धन्यवाद :- बदला नहीं बदलाव चाहिए