:-: निर्भया कांड :-;
1950 में रचित ईश्वरीय विधान द्वारा सन 2012 में घटित निर्भया कांड के पहले दुष्कर्म करने पर अपराधी को अधिक से अधिक 7 वर्ष का दंड दिया जाता था,वो भी तब,जब पीड़िता अपने साथ घटित मामले को सार्वजनिक रूप से प्रमाणित कर सकें और किन्नरों के साथ हुए दुष्कर्म को तो अपराध ही नहीं माना जाता था। यह सारी व्यवस्था जापान देश द्वारा प्रेरित हैं।धर्मपरिवर्तन के अपने निजीस्वार्थ की पूर्ति के लिये राजनीतिज्ञों द्वारा भारतीयों के मन में आपसी मनमुटाव पैदा करने हेतु,पीड़िता की जाति बताकर,घिनौना मानसिक षड्यंत्र किया जाता हैं, ताकि स्वदेशी कानून नियम लाने से उन्हें रोका जा सके,ताकि जिस देश में महिलाओं के आत्मसम्मान के लिये युद्ध की परंपरा थी,वो बस मोमबत्ती लेकर मानसिक ग़ुलाम बने रहे।या तो वर्तमान व्यवस्था के आगे झुककर महिलाएं अपने साथ हमेशा चार लोगों को लेके घूमें, और वो लोग केवल मूकदर्शक बनकर महिला के साथ अपराध घटता हुआ देखें, ताकि न्यायालय में प्रमाण बन सकें।दुष्कर्म बढ़ने का कारण ही यहीं हैं कि व्यवस्था में संशोधन का नाटक कर और उलजुलूल नियम बनाकर,अपराधी को बचाने का प्रयास किया जाता हैं।चाय पीते पीते समाचार पढ़कर भूल जाईये या फ़िर धर्मस्थापना के लिये शंखनाद करिये।
धन्यवाद :- बदला नहीं बदलाव चाहिए
