पहले बोले ऑक्सीजन कप में दूषित पानी के कारण ब्लैक फंगस फैला। फिर बोले ट्यूब और मास्क के कारण ब्लैक फंगस फैला। अब कह रहे जिंक है ब्लैक फंगस का कारण।
पहले दबाकर रेमडीसीवीर, स्टेरॉयड, प्लाज्मा ठोंके। ऐसा माहौल बना दिया मानो ये अमृत है, न मिले तो मौत निश्चित है। फिर बोले ये तो मजाक था जी, इनका कोरोना के इलाज में कोई योगदान नहीं, आज से हम मजाक बन्द करते है। जो बेचारा इनका बंदोबस्त न कर पाया वो दहशत से निपट गया जिसने किसी तरह बंदोबस्त कर लिया वो अब दहशत में मर मर कर जी रहा है कि इतनी फिजूल दवाइयों ने शरीर में न जाने क्या डैमेज कर दिया है!
अगर एलोपैथी कदम कदम पर आयुर्वेद से क्लिनिकल स्टडी के सबूत मांगती है तो अब एलोपैथी को भी सबूत देने चाहिए कि कहाँ है वो क्लिनिकल स्टडी जिसमें साबित हुआ हो कि कोरोना में प्लाज्मा थेरेपी स्टेरॉइड्स या रेमडीसीवीर से असर होता हो। क्या यह घातक रसायन बिना किसी क्लिनिकल स्टडी के रोगियों के शरीर मे ठूंस दिए गए?
हमेशा से आयुर्वेद का मजाक बनाते रहे तब कुछ नहीं बाबा रामदेव ने चार सवाल पूछ लिए तो IMA को मिर्ची लग गयी? क्यों भाई, भगवान हो तुम? तुमपर भरोसा किया था न? क्या रेमडीसीवीर, प्लाज्मा लेने वाले एक भी रोगी की मृत्यु नहीं हुई? क्या यह खिलवाड़ नहीं था जनता के साथ?
मुझे तो यह बात समझ आ गयी है कि डॉक्टर मोह माया लालच से परे का भगवान नहीं, एलोपैथी परम सत्य नहीं। अगर एलोपैथी जरूरी है तो आयुर्वेद भी मजाक नहीं है। यह परस्पर पूरक हो सकते है। किसी भी चिकित्सा पद्धति को खारिज नहीं किया जा सकता।
मुझे यह भी समझ आ गया है कि स्ट्रोइड्स का ओवरडोज जानलेवा है। त्रिफला या गिलोय घनवटी के ओवरडोज से कोई न मरा आजतक ..??
20 लाख का बिल बनाकर भी जान बचाने की गारंटी न देने वाले आज 20 रुपये के काढ़े वाले से सवाल पूछ रहे हैं …!
इसका वजह भी तो है धंधा जो बन्द हो जायेगा…!