जब जंजीरों में कैद करके ज़ैनब (हजरत मोहम्मद साहब की नवासी) को 750 किमी दूर कुफा (इराक) से डमस्कस (लेबनान) ले जाया गया था..!!
ये उस जमाने की बेहद लंबी यात्रा जंजीरों में कैद बच्चों और महिलाओं पर बहुत भारी पड़ी और कईयों ने तो सर्दियों में तड़प तड़प कर रास्ते मे ही दम तोड़ दिया था…
दमास्कस पहुँचने के बाद उन्हें 72 घंटों तक बाज़ार के चौराहे पर खड़ा रखा गया…
उस समय जंग जीतने वाली फौज हारने वाली फौज के लोगों का कटा हुआ सिर साथ लेकर जाती थी और अपनी जीत का जश्न मनाती थी…
इस पूरे सफर में जैनब के साथ उसके भाई हुसैन और अब्बास का कटा हुए सिर साथ लाया गया था..!!
बाद में यजीद से ज़ैनब ने माँग की थी उन्हें उनके शहीदों के सिर लौटा दिए जाएं और उन्हें एक घर दिया जाए जहाँ वो मातम मना सकें..!!
मोहम्मद साहब के गुजर जाने के तीन महीने में ही उनकी बेटी फातिमा की घर में घुसकर निर्मम हत्या कर दी गई थी…
उनके दामाद अली को रमजान में नमाज पढ़ते हुए मारा गया…
बड़े नवासे को जहर दिया गया और छोटे नवासे को कर्बला के मैदान में तीन दिन तक भूख और प्यास से तड़पाने के बाद शहीद कर दिया गया..!!
कमाल की बात ये थी जब ये सब हो रहा था उस समय ना अमेरिका बना था… ना इजरायल था… तब ना हथियार बेचने वाली कंपनियाँ थी और न ही कहीं किसी मुल्क मे ऐसी विनाशक धर्मान्धता थी…
उस समय जो ये सब कर रहे थे वो भी कोई गैर नहीं थे…
उनके अपने थे…
उनके ही मजहब के थे..!!
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खैर… क्या आप जानते है???
कि भारत मे जौहर करती औरतें, तबाह होते सोमनाथ, तक्षशिला, नालन्दा, अयोध्या, काशी, मथुरा, विजयनगर और देवगिरी के जैसे असंख्य मंदिर… लाशों की बेकद्री, कटे हुए सिरों के पिरामिड – इस्लामी आतंक का यह चित्रण तो भारत में बाद में आया..!!
वास्तव मे इस कबीलाई मानसिकता का सबसे पहला पीड़ित या कहें पहला शिकार तो मोहम्मद साहब का परिवार ही बना…
जरा तुलना तो देखिये…
उधर कर्बला के मैदान में 70 का सामना हजारों से था,
इधर चमकौर के युद्ध में 40 का 10 हजार से..!!
उधर मोहम्मद साहब का परिवार था,
इधर गुरू गोविंद सिंह का..!!
उधर शहीद हुसैन का कटा शीश उनकी चार साल की बेटी को खाने की थाल में सजा कर दिया गया,
इधर दारा का कटा शीश शाहजहां को खाने की थाल में दिया गया..!!
उधर जैनब यजीद से अपने भाईयों का कटा हुआ शीश माँग रही थी ताकि उनका मातम मनाया जा सके,
इधर सोनीपत का कुशाल सिंह दहिया गुरू तेगबहादुर के शीश को ससम्मान वापस आनंदपुर साहिब भेजने के लिए अपना सिर काटकर मुगल सेना को सौंप रहे थे..!!
उधर शहीद हुसैन की छोटी बेटी को तड़पाया गया,
इधर गुरू गोविंद सिंह के छोटे बच्चों को जिंदा दीवार में चुनवा दिया गया..!!
उधर जैनब को कुफा (इराक) से दमास्कस ले जाया गया,
इधर बंदा वीर बैरागी को जोकर बनाकर हाथी में लादकर लाहौर से दिल्ली लाया गया, जहाँ उनके मुँह में उनके तीन साल के बच्चे का माँस डाला गया..!!
उधर कर्बला के शहीदों के शवों की बेकदरी की गई,
इधर गुरू गोविंद सिंह के बच्चों को दाह संस्कार के लिए जमीन सोने के सिक्के लगाकर बेची गई..!!
जो जहालत और मजहबी विक्षिप्तता 7वीं शताब्दी में अरब में थी… वही जहालत से भरी मानसिक विकलांगता 17वीं शताब्दी में भारत में भी साफ दिख रही थी..!!
इसके बाद भी मजहबी जेहादियों की नजर मे यजीद एक शैतान और औरंगजेब जिंदा पीर क्यों बना है…
इसी क्यों का उत्तर साबित कर देगा कि भारत मे रह रहे मोमिनो की मानसिकता में क्यों राष्ट्र के प्रति सच्ची निष्ठा नहीं है और हिंदुओं के प्रति भाईचारा वास्तविक न होकर अलतकिया से प्रभावित है…
क्यों वो सरलता से बिना मूँछ के दाढ़ी वाले प्रोपेगेन्डा के जनक मौलानाओं के शिकार होकर, मुजाहिद बनने गर्व महसूस करते हैं..!!
हे ईश्वर, प्रार्थना है कि इस प्रजाति में बुद्धि के साथ दया का भाव दे दे..!!!
जय_श्रीराम
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