:-: प्रेम :-:
प्रेम केवल आकर्षण नहीं ,विज्ञान हैं।इसमें केवल ह्रदय से ह्रदय ही नहीं मिलते,मस्तिष्क से मस्तिष्क भी मिलते हैं।जब दो जीव ,आपस में प्रेम करके संतान उत्पन्न करते हैं, तो उन दोनों के जीन्स में एकत्रित सूचनाएं, यदि समान स्तर पर होती हैं, तो होने वाली संतान का जीवन संतुलित व उच्च आदर्श वाला होता हैं और जब दोनों जीन्स में एकत्रित सूचनाएं असमान होती हैं तो असंतुलन होने से सन्तान का नैतिक व बौद्धिक पतन होकर वह निम्न गति को प्राप्त होता हैं।इसलिए सनातन संस्कृति में समान गुण धर्म में विवाह का नियम बना और उसके सरलीकरण के लिए जातिवाद की नींव पड़ी ताकि सभी सुख,शांति से जीवन जी सकें, लेकिन विधर्मियों द्वारा जातिवाद को पाखंड और दकियानूसी सोच बताकर व प्रेम के अर्थ का अनर्थ निकालकर,उसे केवल शारीरिक सुख तक ही सीमित कर दिया, जिससे वर्तमान पीढ़ी प्रेम के मार्ग से भटककर,क्षणिक सुख को ही प्रेम समझकर ,कुंठित व तनावग्रस्त हो गई ,जिसके कारण समाज अपराध, घृणा व अधर्म की ओर चला गया, प्रेम के व्यापक स्वरूप को रोक पाना असंभव हैं अतः अंतिम विजय प्रेम की ही होगी।
धन्यवाद :- बदला नहीं बदलाव चाहिए