फारूक अब्दुल्ला गद्दारी की भाषा क्यों नहीं बोलेगा ??
लोग फारूक अब्दुल्ला के बयान की निंदा कर रहे हैं जिसमे उसने चीन की मदद से 370 वापस लाने की बात कही है। अगर उसके बयान को देखा जाये तो उसके पीछे, सुप्रीम कोर्ट की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी नज़र आएगी जिसमे सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि असहमति लोकतंत्र का सेफ्टी वाल्व है। अगर इसे दबाया गया तो प्रेशर कूकर फट जायेगा।अब लगता है सेफ्टी वाल्व पर इतना दबाब हो गया कि अब्दुल्ला का प्रेशर कुकर फट गया।
गद्दारों की हर भाषा के लिए अदालत के वे शब्द जिम्मेदार हैं जो शहरी नक्सलों की देश विरोधी गतिविधियों के लिए बोले गए थे। उन शब्दों की ही आड़ में फारूक देशद्रोही बयान देता फिर रहा है। 370 हटाने के बाद जब फारूक, उसके बेटे उमर और महबूबा मुफ़्ती को गिरफ्तार किया गया था और उन पर पब्लिक सेफ्टी एक्ट लगा तो अदालत ने इसे बर्दाश्त नहीं किया था और केंद्र सरकार को नोटिस पे नोटिस जारी किया था।
फारूक और उमर को जेल से छोड़ने के बाद भी वे अपना देशद्रोही एजेंडा जारी रखे हुए हैं इसलिए उन्हें जेल में रखना चाहिए था। अगर महबूबा को छोड़ दिया गया तो वह और ज्यादा जोर शोर से कश्मीर में आग लगाएगी क्योंकि अदालत द्वारा उन सभी को अभिव्यक्ति की बेलगाम स्वतंत्रता मिली हुई है। क्या अब शीर्ष अदालत देश को बताएगी कि फारूक को फिर जेल में डालना उचित होगा या नहीं और क्या सुप्रीम कोर्ट स्वयं सरकार को आदेश देंगे कि वह फारुख को फिर से गिरफ्तार करें??
मगर ऐसा नहीं होगा क्यूंकि अदालत देगी की यह हमारा काम नहीं है, सरकार का काम है। और अगर सरकार करेगी तो देशद्रोह की परिभाषा के लिए संविधान पीठ बिठा दी जाएगी। वैसे भी वाइको जैसे व्यक्ति को देशद्रोह के आरोप सिद्ध होने के बाद भी राज्यसभा का सदस्य बना दिया गया और सजा बस एक साल की हुई। देशद्रोह तो जैसे इन देशद्रोहियों के मौलिक अधिकारों में शुमार हो गया है।