:-: बक्सवाहा जंगल :-:
पिछले 70 वर्षों से जब कोई,किसी जंगल को बचाने ,न्यायालय की शरण में जाता हैं तब क्या होता हैं, समझिये :-
- हिंदू त्योहारों से होने वाले पर्यावरण हानि पर स्वत: संज्ञान लेने वाली कोर्ट,जंगल कटने के मुद्दे से एकदम अनभिज्ञ रहती हैं।* इस दौरान न्याय तंत्र देरी करता हैं, जिससे जंगल साफ करने वाले लोग,आसानी से जंगल में आग लगा सके और पेड़ काट सके।* नये नये पर्यावरण योद्धा और महापुरुषों से घबराने का नाटक करके,तत्काल प्रभाव से जंगल काटने पर रोक लगाकर,दो चार अधिकारियों पर कार्यवाही करके,
जांच समिति का गठन करती हैं, इतनी देर में आधा जंगल साफ हो चुका होता हैं।* फिर कभी कोई,न्यायव्यवस्था पर आवाज़ उठाता हैं, तो उसे अवमानना का नोटिस देकर,दंड और जुर्माना लगाकर,उस व्यक्ति का मनोबल तोड़ देती हैं।* जितने पेड़ काटे,उससे ज्यादा पेड़ लगाने का ज्ञान देकर,अपनी और सरकारी नीतियों की लीपा पोती करके,मामले को रफा दफा कर देती हैं।यह सब न्याय व्यवस्था और पर्यावरण विनाश की ग़हरी मित्रता से ही संभव हुआ हैं।आम आदमी अपनी आँखों के सामने ,आज बकस्वाहा तो कल कोई दूसरा , 70 वर्षो से जंगलों को स्वाहा होते देख रहा हैं और आगे भी देख रहा होगा।
धन्यवाद :- बदला नहीं बदलाव चाहिए