:-: बालविवाह :-:
सनातन नियमों के अनुसार 16 वर्ष की आयु में मनुष्य शारीरिक और मानसिक रूप से परिपक्व होकर,विवाह करने के योग्य हो जाता हैं।समाज में महिलाओं और बच्चों के प्रति अपराध बढ़े, इसलिये सन 1950 में ,विवाह की आयु 18 वर्ष की और जब समाज में अपराध बढ़ने लगे,तो मज़बूरी में नाबालिग़ की आयुसीमा तो घटाकर 18 वर्ष से 16 वर्ष कर दी गई हैं,अब आगे नई रिसर्च और संविधान संशोधन के नाम पर विवाह की आयु भी 16 वर्ष कर देंगे और तर्क देंगे,कि वर्तमान खानपान व जीवनशैली व शिक्षा के कारण,16 वर्ष में विवाह करने को क़ानूनी मान्यता हैं।पिछले 70 वर्षों में नाबालिग़ की आयु 18 वर्ष करने से जो अपराध हुए और जो अपराधी दंड से बच गये, उनके लिये जिम्मेदार कौन हुआ ??जब 16 वर्ष या उससे भी कम आयु के लड़के लड़कियां गर्लफ्रैंड बॉयफ्रेंड बनकर,पति पत्नि की तरह व्यवहार कर सकते हैं, तो विवाह क्यों नहीं कर सकते हैं।वर्तमान के सभी विकसित देशों में बाल और महिला अपराधों का काला इतिहास है, उसी इतिहास से प्रेरणा लेकर भारतीयों पर वही पश्चिमी जीवनशैली क़ानून बनाकर,थोपी गई, जिससे भारत मे भी अपराध बढ़ गए।सनातन संस्कृति में किन्हीं-किन्हीं समाजों में अपनी इच्छा से माता पिता,अपने पारिवारिक और सामाजिक सम्बंध मजबूत करने हेतु,गोना करके ,यह तय करते थे,कि यह लोग भविष्य में विवाह कर सकतें हैं|16 वर्ष की आयु में जब वो गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड बनने का निर्णय ले सकते हैं, तो विवाह करने का क्यों नहीं??।16 वर्ष की आयु के किशोर किशोरियों को उनकी अनुमति से विवाह करनें को बढ़ावा दीजिये।जीत सनातन संस्कृति की ही होगी।
धन्यवाद :- बदला नहीं बदलाव चाहिए
