बीजेपी एक औपनिवेशिक सूचना की विचारधारा वाली पार्टी है। इनके हिंदुत्व में अब हिन्दू एक भौगोलिक पहचान है। ये दरअसल होते हैं कुपढ़। मूल स्रोत से तथ्यों की समीक्षा करना इनके बस का नहीं है। पिछले छः वर्षों से True Indology ने सभी के सभी Distorian की बैंड बजा दी है। सबसे पहले तो नेहरू पालक, बीफखोर रामचन्द्र गुहा था। उसके बाद तो न जाने कितनों की लाइन लगा दी।
बीजेपी वाले तो कभी Primary Source पढ़े नहीं होंगे। ये लोग Secondary Source से पढ़कर वैसे ही विचार अपना लेते हैं। इनको लगता है कि ये गलत है लेकिन ये केवल लगता तक ही सीमित रहते हैं। कभी कभी तो ऐसा लगता है कि इन्हें Primary Source अथवा Secondary Source में अन्तर तक न पता है। यही कारण है कि ये लोग वैचारिक रूप से लेफ्टिस्ट के गुलाम होते हैं यदि वैचारिक दिवलियापन कहेंगे तो भी कुछ त्रुटी न होगी। जब इनसे पूछों कि कहाँ पढ़ा है तो कहेंगे सुना है तो कह दिया। इसमें भी कारण यह हो सकता है इनसे जुड़े लोग बेहद सरल स्वभाव के होते है यह ग्रामीण भू भाग से होते है, जो प्रखर देश प्रेमी होते हैं, इनको इन आतंकी लेफ्टिस्ट की मूल रचना नही समझती है। लेकिन जो नेतृत्व में है उसके लिए यह बहाना नही चलेगा। इसका यदि उदाहरण देखना है संदीप देव से प्राप्त यह फोटो में जुड़े नामो को ध्यान से देखिए, यह 2020-21 की टेक्स्टबुक डेवलपमेंट कमेटी के सदस्य हैं, जो #NCERT आदि के लिए तय करते हैं कि हमारे बच्चों को क्या पढ़ाया जाएगा।
इसमें अधिकांश अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय(JNU) के फरहत हसन, नजफ हैदर, रामचन्द्र गुहा जैसे मार्क्सवादी-इस्लामवादी इतिहासकार भरे गये हैं। मोदी सरकार का शिक्षा मंत्रालय पिछले छह साल से मार्क्सवादियों को हटाना तो छोड़िए, उल्टा भरती कर रहा है। नेहरू-इंदिरा की तरह आज भी भारत की शिक्षा व्यवस्था वामपंथियों को आउटसोर्स ही किया जा रहा है। क्या करिएगा?
आर.सी मजूमदार, यदुनाथ सरकार, सीताराम गोयल जैसे इतिहासकारों की आत्मा न जाने कब तक रोती रहेगी!
नैरेटिव, कॉउंटर नैरेटिव से हटकर यह एक अल्टरनेट नैरेटिव है। यह भी एक कूटनीति है, जिसे हम लोग नही समझ पा रहे हैं।
कहीं ऐसा तो नहीं है जिस सरकार के मंत्री शेख मुजीबुर्रहमान, हिन्दू द्रोही “अम्बेडकर ओर फुले” के गीत गाने से नही थकते उनसे क्या आशा करना?
