बॉटनी का यह एक प्रसिद्ध नियम है जिसके अनुसार किसी क्रिया की दर को जब दो या दो से ज्यादा कारक एक साथ प्रभावित करते हैं तो क्रिया की दर को कमजोर कारक नियंत्रित करता है। सरल शब्दों में मान लीजिये आप मकान बनवा रहे हैं और आपके पास हजार ईंटें हैं और पाँच मजदूर हैं । एक मजदूर दिन में 100 ईंटों की चिनाई करता है तो आप दिन भर में 500 ईंट ही उपयोग में ला सकेंगे।
ऐसे में आप अगर ईंटों की संख्या बढ़ाते हैं तो भी दिन में पांच सौ ईंटें ही लगेंगी। इसलिये यहाँ कमजोर कारक मजदूर संख्या है और वह काम की दर को नियंत्रित करेगा।
आप 6 मजदूर लगाएंगे तो 600,
7 मजदूरों द्वारा 700 ईंटें,
8 मजदूरों द्वारा 800 ईंटें,
9 मजदूरों द्वारा 900 ईंटें,
10 मजदूरों द्वारा 1000 ईंटें लगाई जाएंगी।
अब अगर आप 11 मजदूर लगाएंगे तो अब काम की दर में कोई बढ़ोतरी नहीं होगी क्योंकि ‘मजदूरों की संख्या’ का फैक्टर चरम पर है अतः अब ईंटों की संख्या कमजोर कारक है और वह काम की दर को नियंत्रित करेगी।उत्तरप्रदेश चुनाव में मु स्लिम अपनी अधिकतम शक्ति लगा चुके हैं और अब इससे ज्यादा संगठित प्रदर्शन वह नहीं कर सकते, इसलिये अब वह किसी भी चुनाव में इससे ज्यादा परिणाम प्रदर्शित नहीं कर सकते।
जबकि इसके दूसरी ओर कतिपय जाटों, कतिपय ब्राह्मणों और अधिक संख्या में यादवों द्वारा और अधिकतम सरकारी कर्मचारियों के भाजपा के विरोध में जाने के बावजूद भाजपा ने इस बदतर स्थिति में भी 275 सीटें प्राप्त की। यानि हिंदू फैक्टर अभी भाजपा विजय के लिए कमजोर फैक्टर है और यही भविष्य में चुनाव को प्रभावित करता जाएगा।
भाजपा अपने ‘कमजोर फैक्टर’ को जितना स्वयं के साथ जोड़ती जाएगी उसकी सीटों की संख्या बढ़ती जाएगी और तब मुस्लिम वोटबैंक अर्थहीन हो जाएगा। तब कुंठा में मुस्लिम शुरू करेंगे दंगा फसाद विशेषतः उत्तरप्रदेश में जिससे निबटने के लिए बाबा ‘अपने नंदी’ पर सवार हो चुके हैं।
इस चुनाव में मुस्लिम अपनी अधिकतम क्षमता को प्रदर्शित कर चुके।इसलिये हिंदुओ आशावादी बनिये। अब चुनावों का फैसला ‘हिंदू फैक्टर’ से ही होगा।