भगवान से अनुसंधान रखें ।
बहुत दिन पहनते - पहनते जूता फट जाता है तब उसे कितना ही दुरुस्त करो वह बार - बार फटता ही रहता है । यही बात शरीर की भी है । शरीर जीर्ण होने पर उसमें कुछ न कुछ बीमारी होती ही रहती है । हाँ, दुरुस्त किए हुए जूते का कोई कीला यदि पाँव में चुभने लगे तो जरुर ध्यान देना चाहिेए । वैसे ही बीमारी के कारण मन को वेदना होने लगी तो सावधान होना चाहिेए और उसका असर मन पर न होने दें । अपनी बीमारी से, अपने बुढ़ापे से लाभ उठा लेना चाहिेए । कोई चतुर, सुंदर गृहिणी जैसे चोकर से कुछ मिष्ठान्न बनाती है वैसे ही हमें अपनी बीमारी से भगवान का अनुसंधान बनाए रखना सीख लेना चाहिेए । अनुसंधान में रहने पर गृहस्थी में भी मजा आता है, अड़चनों और संकटों में भी मजा आता है । अच्छे तैराक से यदि कहा जाए कि सीधा तैरो तो वह उसे जँचेगा नहीं । वह गोते लगाएगा, डुबकियाँ लगाएगा, टेढ़ा - मेढ़ा तैरेगा । वैसे ही भगवान के अनुसंधान में रहें तो गृहस्थी में मजा आएगा ।
किसी भी वस्तु को एक बार पहचान लेने पर उससे डर नहीं लगता । *विषयों को जब तक हम पहचानते नहीं, तब तक वे हमें कष्ट पीड़ा देते हैं । इसलिेए जो जो बातेँ होती रहती हैं वे सब भगवान की इच्छा से ही होती रहती हैं , ऐसा भान रखकर हम अपनी वृत्ति को नियंत्रित रखने का प्रयत्न करें ।*
परमार्थ में हम स्वयं ही बाधा बनते हैं । हमारी वृत्ति जहाँ जहाँ जाती है वहाँ वहाँ भगवान का निवास होता है । अत: वृत्ति चाहे कौन सी भी निर्माण हो यदि हम उस समय भगवान का स्मरण करें तो वृत्ति तुरंत मिट जाएगी या शिथिल हो जाएगी । हम सदा अपने उपास्य देवता का स्मरण करते रहें, उन के चरणों पर माथा टेकें और उनकी अनन्य भाव से प्रार्थना करें, कि “हे भगवान, तुम में लीन होते समय बाधा बनकर आनेवाले विषय तुम्हारी कृपा के बिना हट नहीं सकते । आज तक मैंने संसार का अनुभव लिया है । अब मुझे अनुभव होने लगा है कि तुम्हारी प्राप्ति के बिना किसी से भी सुख प्राप्त नहीं होगा । फिर भी मेरी वृत्ति ही बाधा बन रही है। मेरे अपने अज्ञान के कारण ही मैं अपने लिये बाधा बन रहा हूँ । फिर भी तुम्हारा, यानी पर्याय से मेरा ही ज्ञान मुझे हो और उसके कारण मैं तुम्हें देख पाऊँ, यही मेरे जीवन की अंतिम इच्छा है । यह इच्छा तुम्हारी कृपा के बिना पूर्ण नहीं हो सकती । इसीलिए हे भगवान ऐसा उपाय करो कि जिससे मेरा मन तुम्हारे चरणों में लीन हो । संसार में मुझे अब इससे अधिक कुछ नहीं चाहिेए, अब तो मैं तुम्हारा हो गया हूँ । इसके बाद जो भी होगा वह तुम्हारी ही इच्छा है, ऐसा मानकर ही मैं जीवन व्यतीत करूँगा और तुम्हारा नामस्मरण करने का अत्यधिक प्रयास करूँगा । तुम मुझे अपना मानो ।”
वृत्ति स्थिर होने पर संतोष होता ही है ।
।। श्री राम जय राम जय जय राम ।।
जय श्री योगेश्वर
जय भारत