:-: भीख में पैसा :-:
सनातनी ग्रंथों में कहीं भी मुद्रा दान का वर्णन नहीं मिलता,क्योंकि पहले मुद्रा का प्रचलन सीमित था और दैनिक जीवन में उपयोगी वस्तुएँ, वस्तुओं के बदले खरीदना ,बेचना संभव था और ना ही 1857 से पहले के भारत में भारत में कोई भिखारी भी नहीं था।1857 से अभी तक लागू ब्रिटिश तंत्र के कारण भिखारी तंत्र को मज़बूती मिली और वर्तमान में मुद्रा का प्रचलन भी अधिक हैं।वर्तमान के प्रशासन को सारी जानकारी होती हैं कि शहर में कितने भिखारी कहाँ से,क्यों आते हैं और क्या करते हैं।अगर प्रशासन कहें कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं तो वो प्रशासन ही किस काम का?अगर आप किसी भिखारी को दान में केवल भोजन ही देंगे,तो ऐसे में अपराध अधिक बढ़ेंगे, क्योंकि कोई भिखारी कितना खायेगा और जब उसे पैसे की आवश्यकता पड़ेगी,तो कोई दूसरा व्यक्ति भोजन के बदले में उसका काम तो करेगा नहीं ? इसलिये आप का काम दान देना हैं, विरोध ही करना हैं, तो प्रशासन का विरोध कीजिये,जो सभी प्रकार के अपराध बढ़ने की जड़ हैं।आपके द्वारा किये गए दान के पीछे की भावना पर,आपको पाप या पुण्य फल मिलता हैं, आपके द्वारा दिए गए दान का लेने वाले व्यक्ति ने सदुपयोग या दुरुपयोग, जो भी किया,इससे उस व्यक्ति के पाप पुण्य निर्भर करेंगे।दान करना ही आपका कर्म हैं।आप केवल दान करिये।
धन्यवाद :- बदला नहीं बदलाव चाहिए
