:-: मानसिक तनाव :-:
यह पृथ्वी एक जीवित ईकाई हैं, जो भौतिक तत्वों से मिलकर बनती हैं, जैसे हमारा शरीर बनता हैं।मृत ग्रहों पर जीवन संभव नहीं होता,यह एक साधारण अवधारणा हैं।पृथ्वी जीवित हैं, तो हर जीवित ईकाई के समान ही उसका भी मन हैं, जो शांति में आनंदित और शोर शराबे में चिड़चिड़ा भी हो जाता हैं।वर्तमान में आधुनिक विज्ञान और विकास के कारण उत्तपन्न हुए,सभी प्रकार के प्रदूषणों के कारण ,प्रकृति भयानक मानसिक पीड़ा झेल रही हैं, ठीक वैसे ही जैसे हमें मानसिक तनाव होता हैं, तो उसके कारण हमारा स्वयं का और हमसे जुड़े सभी लोगों पर इसका नकरात्मक प्रभाव पड़ता हैं।उसी तरह ही प्रकृति के स्वाभव में उग्र और चिड़चिड़ापन बढ़ने के कारण,समस्त जीव समुदाय को प्राकृतिक आपदाओं को झेलना पड़ रहा हैं।तनाव में जैसा व्यवहार हम करते हैं, वैसा ही प्रकृति भी करती हैं ।आधुनिक विज्ञान की अज्ञानता में हम पृथ्वी के भौतिक शरीर का अत्यधिक मात्रा में शारीरिक दोहन कर रहें हैं, जिससे पृथ्वी वर्तमान में ओर अधिक भार उठाने में सक्षम नहीं हैं, अगर ऐसा ही चला तो स्वयं को स्वस्थ रखने के लिए ,प्राकृतिक आपदाओं में बढ़ोत्तरी करके,पृथ्वी स्वयं का बचाव तो कर लेगी,लेकिन इसके कारण अरबों जीव,काल ग्रास में समा जाएँगे।इसलिए सनातन संस्कृति में पृथ्वी को जीवित मानकर ही सभी नीति नियम बनाएं गए थे,जिससे प्रकृति भी खुश और सभी जीव भी खुश रहें,लेकिन वर्तमान में पृथ्वी को केवल भौतिकता को भोगने मात्र की वस्तु समझा जाता हैं।विजय सत्य सनातन संस्कृति की ही होगी।
धन्यवाद :- बदला नहीं बदलाव चाहिए