बेटियों का विवाह तय होते ही मातापिता जब तक महज एक अदद डबल बैड, ड्रैसिंग टेबल और सेफ-अलमारी की सोच से निकलकर बाहर नहीं आएंगें , और अपनी बेटी रूपी पौध को ससुराल की मिट्टी में रोपने से पहले उस मिट्टी की उर्वरकता , खाद, पानी , हवा और धूप के साथ साथ माली की कार्य-कुशलता, संवेदनशीलता, गतिशीलता, आत्मनिर्भरता , सहनशीलता , आत्मकेंद्रिता की जाँच पड़ताल करना शुरु नहीं करेंगें तब तक विवाह नामक संस्था अपनी विश्वसनीयता को लेकर संदेह के घेरे में ही रहेगी !
वरना,
कुछ नहीं बदलेगा,
दूल्हे की मैरून शेरवानी,
दुल्हन का लाल लहंगा,
बैंड पर “मेरे यार की शादी है” की धुन
“बहारों फूल बरसाओ” ट्रैक बजाकर ,
आने वाले पतझड़ की आहट दबा ,
बेटियों के हृदय में सचमुच की बहार का भ्रम पैदा करता फिल्मी गीत,
विवाह की रस्मों एवं मंत्रोच्चारण को
जैसे तैसे निपटाकर चैन की साँस लेते
‘सो काल्ड मनमीत्स!’
विवाह तय होते ही किसी भी मायके और ससुराल ने,
कभी सोचा है बेटियों को किताबों की अलमारी देने की ?
कभी सोचा है उसको पेंटिंग के लिए कैनवस और ब्रश देने की ?
कभी सोचा उसे डायरियाँ और खूबसूरत कलम देने की ?
कभी सोचा है उसके सपनों के रंग जानने की ?
नहीं किसी ने कभी नहीं सोचा ,
सिवाय बैड,ड्रैसिंग टेबल और अलमारी देने के !
क्या ये विवाह की जरूरत है या इसकी जरूरत थी तभी विवाह किया गया?
सोचने बैठो तो पूरा सिस्टम ही गलत है !
बाद में तभी तो सामने आता है कि सास गलत है , बहु गलत है और मायका या फिर पूरा ससुराल गलत है!
मुझे ऐसा लगता है जब तक एक एक करके हर ब्याही बेटी वापिस मायके लौटकर नहीं आती , तब तक विवाह का ये सिस्टम यूंही उथली उपरी साज सजावट के नीचे सड़ता गलता रहेगा!
इसे रिवाईव कौन करेगा ?
यह रिवाईव कैसे होगा , नहीं जानती !
जिस सिस्टम में बेटी के सोने को पलंग और मरने को चादर बाप को ही देनी है तो ऐसे सिस्टम में कौन कब तक जबरन यूंही सर्वाईव करेगा , पता नहीं !
मैं स्वयं बस यही सोचती हूं ,
मेरे यहां जो आएगी,
उसे सब यहीं मिलेगा,
बस पंख लेकर आए वो !
विवाह नामक यह पवित्र बंधन सामाजिक जटिलताओं और कुटिलताओं का शिकार हो चुका है !
लेेकिन एक बात तो यह भी सत्य है की दहैज लेना बहुत ग़लत है तो दहेज देना भी उतना ही ग़लत है ताड़ी दोनों हाथों से बजती है । अगर पैसों की जगह संस्कार दिए जाएं और सुसराल वाले भी संस्कारों वाली पढ़ी लिखी लड़की देखें तो समाज में बदलाव आ सकता है । ताड़ी दोनों हाथों से ना वजाए दहेज मांगने वाले घर कभी लड़की की शादी ना करें । और जो दहेज का लालच दे लड़की की शादी के लिए वहां अपने लड़के की शादी बिल्कुल मत करें । एक बात जरूर याद रखें । सभी की अपनी अपनी किस्मत होती है यदि किस्मत में पैसा होगा तो बिना दहेज वाली लड़की भी राज करेंगी । किस्मत में नहीं तो कितना भी दहेज ले लो कोई खुशी नहीं मिलने वालीं । दहेज देने वाले भी दहेज की जगह संस्कार दे तो घर को स्वर्ग बनने से कोई नहीं रोक सकता ।यह सोच ग़लत है की पैसों से खुशियां आती है ।
