* रात्रि चिंतन*
जब शब्द ब्रह्म है, तो इसका अपव्यय करना कभी भी ज्ञानी का लक्षण नहीं हो सकता है। कम बोलना और काम का बोलना बस यही तो वाणी की तपश्चर्या है॥
सभी को सुख देने की क्षमता भले ही आप के हाथ में न हो, किन्तु किसी को दुख न पहुँचे, यह तो आप के हाथ में ही है। हमेशा दूसरों का साथ दे, पता नहीं ये पुण्य ज़िंदगी में कब आपका साथ दे जाए॥
किसी से अपने जैसे होने की उम्मीद मत रखिये, क्योंकि आप अपने सीधे हाथ में किसी का सीधा हाथ पकड़ कर कभी नहीं चल सकते।
किसी के साथ चलने के लिए अपने सीधे हाथ में उसका उल्टा हाथ ही पकड़ना पड़ता है, तभी साथ चला जा सकता है॥
॥ जय श्री राधे कृष्ण ॥