:-: रासलीला :-:
कोई भी जीव चाहे वो स्त्री हो या पुरुष या फ़िर अन्य किसी भी दृश्य या अदृश्य योनि से हो,जो युगों युगों से लगातार अनेकों जन्मों से अपने सभी विकारों को नियंत्रित करके उच्च सात्विक जीवनशैली जीकर,निरपराध होकर,ईश्वर की भक्ति करता हैं,ऐसा जीव जिस जन्म में अपने मोक्ष को प्राप्त होता हैं, तब वह अपने अंतिम समय में ईश्वर भक्ति में लीन होकर ही अपने प्राण त्यागता हैं,उसे रासलीला कहते हैं।द्वापरयुग में श्रीकृष्ण गोपियों संग रासलीला रचते हैं।यहाँ पर रचनाकार ने कहानी को नाट्य रूपांतरित और आकर्षित बनाने हेतु श्रीकृष्ण को पुरूष और गोपियों को स्त्री की संज्ञा दी हैं।वास्तविकता में भक्त और ईश्वर का कोई लिंग नहीं होता,जैसे प्रेम का कोई लिंग नहीं।ऐसे भक्तों को ईश्वर के सामने ही अपने प्राण त्यागने का मौका मिलता हैं, जैसे त्रेतायुग में माता शबरी को श्रीराम के सामने प्राण त्यागना भी रासलीला ही हैं।श्रीराम हो या श्रीकृष्ण, हर युग में रासलीला के लिये ईश्वर,केवल अपना रूप बदलते हैं,लेकिन भक्त और भगवान का प्रेमरूपी मिलन निराकार होता हैं।रासलीला का आनंद ही बहुत अद्भुत हैं।जैसे जिसने प्रेम किया हो,तब भी वह शब्दों में प्रेम का वर्णन नहीं कर सकता।प्रेम एक ही हैं, उसका अनुभव सबका अलग हैं, ऐसा ही कुछ रास लीला के साथ भी हैं, मिलन जीवात्मा और परमात्मा का,और अनुभव आनंद सबका अपना अपना।
धन्यवाद :-बदला नहीं बदलाव चाहिए
