वसन्त – पंचमी- फिनोमिनल यथार्थ
-माघशुक्ल पक्ष पंचमीको वसन्त पंचमी या श्रीपंचमी कहते हैं।यह पर्व सरस्वतीके आराधकों में अत्यन्त प्रसिद्ध है। यह पर्व इस वर्ष १६ फरवरी मंगलवार को पड़ रहा है।
– वसन्त पंचमी के दिन भगवती सरस्वती की पूजा होती है या सौभाग्य कामना से दम्पत्ती रति और कामदेव की पूजा आज के ही दिन करते हैं।
*- धर्मशास्त्र के अनुसार आज की ही तिथि से वसन्त उत्सव की प्रवृत्ति होती है— *माघ-शुक्ल-पंचमी वसन्त- पञ्चमी।तस्यां वसन्तोत्सवारम्भ:।( धर्मसिन्धु:)अतः काशी में आज ही होलिकादण्ड की स्थापना चौराहे और गलियों में होती है।*
*- आज महानगरोंमें पढ़ने वाले अनेक विद्यार्थी वसन्त पंचमीको नहीं जानते।उन्हें नहीं मालूमकी भारतीयपरंपरा
में आज की ही तिथि में विद्या की देवी वागीश्वरी का धरा पर प्रादुर्भाव हुआ था।अतःइसे वागीश्वरीजयन्ती भी कहते हैं।आज के दिन पूर्वाह्न में सरस्वती देवी की प्रतिमा की पूजा की जाती है।वसन्त रंग जो सरसों के पुष्प की तरह प्राकृतिक होता है उसी तरह का वस्त्र धारण किया जाता है।वैसा ही तिलक माथे पर सजाया जाता है।
*-भगवती सरस्वती की पूजा धीरे धीरे अधिक फैलती गयी और रति काम महोत्सव की विधि प्रायः समाप्त सी हो गयी।ऐसे में यदि आज का विद्यार्थी सरस्वती पूजा को नहीं जानता तो उसे शारदा मन्त्र का आज ही जप कर अपनी प्रतिभा को प्रस्फुटित करने हेतु मार्ग खोलना ही चाहिए।*
– — शारदा-मन्त्र —
ॐ शारदे वरदे शुभ्रे ललितादिभिरन्विते।
वीणा-पुस्तक-हस्ताब्जे जिह्वाग्रे मम तिष्ठतु ।।
परम्परा प्राप्त इस शारदा मन्त्र के प्रतिदिवसीय स्मरण से भगवती सरस्वती देवी प्रसन्न होती हैं।
विद्यार्थीयदि एक पीत पुष्प चढ़ाकर भगवती सरस्वती का कोई स्तोत्र पाठ करले तबभी वह विद्याके क्षेत्रमें सफलता को प्राप्त करता है।सरस्वतीदेवी की आराधनासे साधारण व्यक्ति को विशिष्ट प्रतिभा प्राप्त होतीहै और विशिष्ट बुद्धि वाला अतीन्द्रिय ज्ञान सम्पन्न हो जाताहै।भगवती सरस्वती की लौकिकऔर वैदिक दो प्रकारकी स्तुतियाँ उपलब्ध हैं।
यहाँ कतिपय स्तुतियों को विद्यार्थियों के कल्याणार्थ दिया जा रहा है —
— वैदिक मन्त्र —
ॐ पावका न: सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती।
यज्ञम् वष्टु धिया वसु: ।। ऋग्वेद १/३/१०
ॐ चोदयित्री सुनृतानां चेतन्ती सुमतीनाम्।
यज्ञम् दधे सरस्वती ।। ऋग्वेद १/३/११
ॐ अम्बितमे नदीतमे देवीतमे सरस्वती ।
अप्रशस्ता इव स्मसि प्रशस्तिमम्ब नस्कृधि।।१/४१/१६
महर्षि आश्वलायन कृत स्तोत्र
ॐ चतुर्मुख-मुखाम्भोज-वनहंस-वधूर्मम।
मानसे रमतां नित्यं सर्वशुक्ला सरस्वती ।।
ॐ नमस्ते शारदे देवि काश्मीर-पुर- वासिनी ।
त्वामहं प्रार्थये नित्यं विद्यादानं च देहि मे ।।
ॐ अक्षसूत्र-धरा पाश- पुस्तक- धारिणी ।
मुक्ताहार-समायुक्ता वाचि तिष्ठतु मे सदा।।
ॐ कम्बुकण्ठी सुताम्रोष्ठी सर्वाभरणभूषिता ।
महासरस्वती देवी जिह्वाग्रे संनिविश्यताम् ।।
ॐ या श्रद्धा धारणा मेधा वाग्देवी विधिवल्लभा।
भक्तजिह्वाग्र-सदना शमादि-गुणदायिनी ।।
ॐ नमामि यामिनीनाथ लेखालंकृत – कुन्तलाम् ।
भवानीं भव- संताप -निर्वापण -सुधानदीम् ।।
सरस्वती – स्तोत्र
या कुन्देन्दु-तुषार-हार-धवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणा वर दण्ड मंडित करा या श्वेतपद्मासना ।
या ब्रह्माच्युत शंकर प्रभृतिभिर्देवै: सदा वंदिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ।।
शुक्लां ब्रह्म विचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनी
वीणा पुस्तक धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते स्फाटिक मालिकां च दधतीम् पद्मासने संस्थितां
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम् ।।
सरस्वति महाभागे विद्ये कमल-लोचने ।
विद्यारूपे विशालाक्षि विद्यां देहि नमोस्तुते ।।
इसके अतिरिक्त महर्षि आश्वलायन कृत "" सा मां पातु सरस्वती """ स्तोत्र भी दश मन्त्रों का है।
सरस्वती न केवल मोक्ष विद्या या भोग विद्या की दायिनी हैं बल्कि युद्ध विद्या कीभी वे अधिष्ठात्री देवता हैं।
हंसवाहिनी के रूप में परा विद्या और मयूरवाहिनी के रूप में युद्धादि अपरा विद्या को वे ही देती हैं।
अनिरुद्धा सरस्वती के रूप में महाप्रलय मचा देने वाला
युद्ध सरस्वती ही करती हैं।
हे भगवति सरस्वति! अपने वरद पुत्रों को ज्ञान विज्ञान से भर दीजिये जिससे सनातन का मस्तक कभी झुक न सके। इस देश के वैज्ञानिकों की हत्या न हो सके ऐसी रक्षा पंक्तिका निर्माणआपही कर सकतीहैं।स्रष्टाकी वधूकाकार्य सृष्टि में प्रतिभा का उत्पादनऔर उन्नयन परकहो यहीआप से प्रार्थना है। वसन्त पंचमी की सहस्रश:शुभ कामनायें —
“” सरस्वती श्रुति महती महियताम् ।।””
जयति-सत्य-सनातन्-संस्कृति
जयतु-जयतु-हिन्दू-राष्ट्रम्
हर-हर-महादेव
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