विश्वास और भरोसा
एक बार , दो बहुमंजिली इमारतों के बीच , बंधी हुई एक तार पर लंबा सा बाँस पकड़े , एक नट चल रहा था . उसने अपने कन्धे पर अपने तीन साल के बेटे को बैठा रखा था .
सैंकड़ों , हज़ारों लोग दम साधे देख रहे थे . सधे कदमों से , तेज हवा से जूझते हुए , अपनी और अपने बेटे की ज़िंदगी दाँव पर लगाकर , उस कलाकार ने दूरी पूरी कर ली .
भीड़ आह्लाद से उछल पड़ी ! सीटियाँ बजने लगी . देर तक तालियाँ बजती रहीं .
लोग उस कलाकार की फोटो खींच रहे थे , उसके साथ सेल्फी ले रहे थे . उससे हाथ मिला रहे थे . वो कलाकार माइक पर आया , भीड़ को बोला , “क्या आपको विश्वास है कि मैं यह दोबारा भी कर सकता हूँ ?”
भीड़ चिल्लाई , “हाँ हाँ ! तुम कर सकते हो ! निश्चय ही फिर से कर सकते हो .
उसने पूछा , क्या आपको विश्वास है ? भीड़ चिल्लाई हाँ पूरा विश्वास है . हम तो शर्त भी लगा सकते हैं कि तुम सफलता पूर्वक इसे दोहरा भी सकते हो !
कलाकार बोला , पूरा पूरा विश्वास है ना ! !!
भीड़ बोली , हाँ हाँ .
कलाकार बोला , “ठीक है , कोई मुझे अपना बच्चा दे दे ! मैं उसे अपने कंधे पर बैठा कर रस्सी पर चलूँगा .”
खामोशी ! शांति ! चुप्पी फैल गयी . किसी ने अपना बच्चा नहीं दिया .
कलाकार बोला , “डर गए…!” अभी तो आपको विश्वास था कि मैं कर सकता हूँ . असल मे आप का यह विश्वास (believe) है . मुझ में भरोसा (trust) नहीं है . दोनों में फर्क है साहेब !
हम सभी का भी यही फलसफा है ! कुछ लोग लोगों को को समझ नहीं पाते . जो वास्तव में सम्पूर्ण विश्वास के लिए ही बने होते है ! क्योंकि बीते दिनों में ही खोए रहते है .
यही कहना है , “ईश्वर हैं !” ये तो विश्वास है ! परन्तु ईश्वर में सम्पूर्ण भरोसा नहीं है .
You believe in God , but you don’t, trust him.
अगर ईश्वर में पूर्ण भरोसा है तो चिंता , क्रोध , तनाव क्यों ? जरा सोचिए ! !!
सदैव प्रसन्न रहिए ! जो प्राप्त है , वही पर्याप्त है ! !!