श्रीकृष्ण और उङुपि का राजा
“पांच हजार साल पहले, पांडवों और कौरवों के बीच कुरुक्षेत्र में हुई लड़ाई सबसे भीषण लड़ाई थी।
कोई भी निष्पक्ष नहीं रह सकता था। आप या तो कौरवों की ओर हो सकते थे या पांडवों के पक्ष में। सैंकड़ों राजा किसी न किसी पक्ष से लड़ाई में शामिल हो गए।
लेकिन उडुपी के राजा ने निष्पक्ष रहने का फैसला किया। (उडुपी रेस्टोरेंट होटल का बहुत बड़ी संख्या है अगर आपने भारत के पश्चिम और दक्षिण के यात्रा या आपका सर्विस यह निवास रहा होगा तो कामत होटल और उडुपी रेस्टोरेंट एंड होटल महाराष्ट्र गोवा कर्नाटक और तमिलनाडु केरल में बहुत बहुत ज्यादा देखे ही होगे हर कस्बे मार्केट में उडुपी रेस्टोरेंट होटल आपको मिला होगा।)
उन्होंने कृष्ण से बात की और कहा, ‘लडऩे वालों को भोजन की जरूरत होती है। मैं इस युद्ध में खान-पान का प्रबंध करूंगा।
उडुपी के बहुत से लोग आज भी इसी पेशे में हैं।
कृष्ण बोले, ‘ठीक है, किसी न किसी को तो खाना बनाना और
परोसना ही है, तो आप यह काम कर लें।
कहा जाता है कि करीब 5 लाख सैनिक इस लड़ाई के लिए इकट्ठे हुए थे। लड़ाई अठारह दिन चली और हर दिन हजारों लोग मर रहे थे।
इसलिए उडुपी के राजा को उतना कम भोजन पकाना पड़ता था ताकि भोजन बरबाद न हो। किसी भी तरह भोजन का प्रबंध किया ही जाना था।
पांच लाख लोगों के लिए भोजन पकाते रहने से काम नहीं चलता। या अगर वह कम भोजन पकाते, तो सैनिक भूखे रह जाते।
लेकिन उडुपी के राजा ने भोजन का प्रबंधन बहुत अच्छी तरह किया।
गजब की बात यह थी कि हर दिन भोजन सभी सैनिकों के लिए पर्याप्त हो जाता और भोजन की कोई बरबादी भी नहीं होती।
कुछ दिन बाद, लोग हैरान होने लगे, कि वह बिल्कुल सटीक मात्रा में भोजन कैसे पका पा रहे हैं! कोई नहीं बता सकता था कि किसी दिन कितने लोगों की मृत्यु हुई। इन चीजों का हिसाब लगाने तक अगले दिन की सुबह हो जाती और फिर से युद्ध का समय आ जाता।
रसोइये के पास यह पता लगाने का कोई तरीका नहीं थ कि हर दिन कितने हजार लोगों की मृत्यु हुई, लेकिन हर दिन वह ठीक उतना ही भोजन पकाता जो शेष बचे सैनिकों के लिए पर्याप्त होता।
जब किसी ने उडुपी के राजा से पूछा कि आप ऐसा कैसे कर पाते हैं? तो उडुपी के राजा ने जवाब दिया :–
मैं हर रात कृष्ण के शिविर में जाता हूं।
कृष्ण रात में उबली हुई मूंगफली खाना पसंद करते हैं, इसलिए मैं उन्हें छील कर एक बरतन में रख देता हूं।
वह कुछ ही मूंगफली खाते हैं, उनके खाने के बाद मैं गिनती करता हूं कि उन्होंने कितनी मूंगफली खाई।
अगर उन्होंने दस मूंगफली खाई, तो मुझे पता चल जाता है कि अगले दिन दस हजार लोग मर जाएंगे।
इसलिए अगले दिन दोपहर के भोजन में मैं दस हजार लोगों का खाना कम कम कर देता हूं। हर दिन मैं इन मूंगफलियों को गिन कर उसी के मुताबिक खाना पकाता हूं और खाना सभी सैनिकों के लिए काफी होता है।
अब आपको पता चला, कि पूरे कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान कृष्ण इतने शांत और संयमशील क्यों थे!”
ब्यूरो चीफ
दिनेश सिंह
आजमगढ़