एक बार श्री कृष्ण जी के गुरु दुर्वासा ऋषि अपने शिष्यों के साथ कही जा रहे थे।
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रास्ते में किसी जंगल में रूककर उन्होंने आराम किया। उसी के पास ही द्वारका नगरी थी।
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दुर्वासा ऋषि ने अपने शिष्यों को भेजा कि श्री कृष्ण को बुला कर लाओ। तब उनके शिष्य द्वारका गये और द्वारकाधीश को उनके गुरुदेव का सन्देश दिया।
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सन्देश सुनते ही श्री कृष्ण जी दौड़े -2 अपने गुरु के पास गए। और उन्हें दण्डवत प्रणाम किया।
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उनसे द्वारका चलने के लिए विनती की लेकिन दुर्वासा ऋषि जी ने चलने के लिए मना कर दिया, और फरमाया कि हम फिर कभी आपके पास आयेंगे।
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श्री कृष्ण जी ने पुन: दुर्वासा ऋषि जी से विनती की तब दुर्वासा ऋषि जी ने फरमाया कि ठीक है कृष्ण हम तुम्हारे साथ चलेंगे..
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लेकिन हम जिस रथ पर जायेंगे, उसे घोड़े नहीं खीचेंगें एक तरफ से तुम और एक तरफ से तुम्हारी पटरानी रुकमणि खीचेंगी।
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श्री कृष्ण उसी समय दौड़ते हुए रुकमणि के पास गए और उन्हें बताया कि मुझे तुम्हारी सेवा की जरुरत है।
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तब रुकमणि को उन्होंने सारी बात बताई तब वह दोनों अपने गुरुदेव के पास आये, और उन्हें रथ पर बैठने के लिए विनती की।
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जब उनके गुरुदेव रथ पर बैठे तो उन्होंने अपने शिष्यों को भी रथ पर बैठने के लिए कहा..
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लेकिन श्री कृष्ण जी ने परवाह ना की.. क्योंकि वे जानते थे कि गुरुदेव उनकी परीक्षा ले रहे है।
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रुकमणि और श्री कृष्ण जी ने रथ को खींचना आरम्भ किया और उस रथ को खींचते – खींचते द्वारका ले पहुँचे।
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जब गुरुदेव द्वारका पहुँचे तो श्री कृष्ण जी ने उन्हें राज सिंघासन पर बिठाया। उनका आदर सत्कार किया फिर श्री कृष्ण जी ने 56 तरह के व्यंजन बनवाये अपने गुरुदेव के लिए।
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लेकिन जैसे ही वह व्यंजन गुरुदेव के पास पहुँचे उन्होंने सारे व्यंजनों का तिरस्कार कर दिया।
श्री कृष्ण जी ने पुन: अपने गुरुदेव से पूछा कि गुरुदेव आप क्या लेंगे ?
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तब दुर्वासा ऋषि जी ने खीर बनवाने के लिए कहा। श्री कृष्ण जी ने आज्ञा मानकर खीर बनवाई।
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खीर बनकर आई.. वो खीर से भरा पतीला दुर्वासा ऋषि जी के पास पहुँचा.. उन्होंने खीर का भोग लगाया.. थोड़ी-सी खीर का भोग लगा कर उन्होंने श्री कृष्ण जी को खाने के लिए कहा।
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उस पतीले में से श्री कृष्ण जी ने थोड़ी सी खीर को खाया।
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तब उनके गुरुदेव ने श्री कृष्ण को बाकी खीर अपने शरीर पर लगाने की आज्ञा दी। श्री कृष्ण जी ने आज्ञा पाकर खीर को अपने शरीर पर लगाना शुरू कर दिया।
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उन्होंने पूरे शरीर पर खीर लगा ली। लेकिन जब पैर पर लगाने की बारी आई तो श्री कृष्ण जी ने अपने गुरुदेव को अपने पैरों पर खीर लगाने के लिए मना कर दिया।
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श्री कृष्ण जी ने कहा ‘हे गुरुदेव.. यह खीर आपका भोग-प्रसाद है, मैं इस भोग को अपने पैरों पर नहीं लगाऊंगा।’
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उनके गुरुदेव श्री कृष्ण जी से बहुत खुश हुए।
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उन्होंने फरमाया ‘हे कृष्ण.. मैं तुमसे बहुत खुश हूँ तुम हर परीक्षा में सफल रहे, मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूँ कि पूरे शरीर में तुमने जहाँ -2 खीर लगाईं है वह अंग आपका वज्र के समान हो गया है…
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और इतिहास साक्षी है कि महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण जी का कोई भी अस्त्र-शास्त्र बाल भी बाँका नहीं कर पाया।
इसीलिए ठाकुरजी के चरण कमल अति कोमल हैं । और उनसे प्रेम करने वाले साधक इन चरण कमल को अपने ह्रदय सिंहासन पर धारणकरने के लिए जीवन भर प्रयास करतें हैं ।
जय श्री राधे राधे