समय की नदी के भीषण प्रवाह में खड़े अधोरी के पांव से उलझ कर एक शव खड़ा हो गया और गर्जन किया,
“देहि युद्धं नरपते ममाद्य रणमूर्धनि
उद्धरिष्यामि ते सद्यः सामात्यसुतबान्धवम”
अघोरी बोला- अवश्य, धर्मयुद्ध होगा तभी धर्मसंस्थापना होगी पर युद्ध हो तो हम विजय को निश्चित करें, इसका आवाहन कैसे हो? इसकी तैयारी चरणबद्ध तरीके से निश्चित हो।
2014 में जब नई सरकार का गठन हुआ था जब सेना के पास 15 दिन के युद्ध हेतु बारूद था। पुराने पड़ते आयुधों और विमानों तथा पोतों की कथाएँ प्रतिदिन संचार माध्यमों में प्रेषित हो रही है। कोई भामाशाह भी तो चाहिए जो 125 करोड़ों के लिए युद्धकाल में जीवन निर्वाह हेतु धन उपलब्ध करे।
आयात रुकने से जो बाधाएं आएँगी उसे संभालने हेतू परिपक्व जनमानस भी चाहिए।
हिटलर से लेकर चर्चिल तक सबने योजनापूर्वक युद्ध का आवाहन किया पर इतिहास ने किसी को भी पुरस्कृत नही किया।
अधूरे युद्ध के बदले इतिहास से दंडित होने से श्रेष्ठ है कि सम्पूर्ण तैयारी की जाए।
युद्ध तब हो जब हम चाहें, तब नही जब पड़ोसी चाह रहा हो।
विजेता अंतिम हंसी हँसता है और उसके लिए लंबी प्रतीक्षा करता है। मोदी ने शपथ लेने के अगले दिन क्या कहा था याद करो। मैं 4 वर्ष चुपचाप काम करूंगा और पांचवें वर्ष राजनैतिक परिणाम दूंगा।
“यौवन का लक्षण ही अधैर्य है, इसे लक्ष्य दीखता है पर मार्ग नही”
अफगान युद्ध ने प्रति अमेरिकी नागरिक पर 21 लाख 40 हजार रुपये का अतिरिक्त कर का बोझ डाला, क्या इस प्रकार के व्यय के लिए हम तैयार हैं?
एक सीमित युद्ध प्रारम्भ करने के लिए 10 हजार करोड़ रुपये चाहिए।
नोटबन्दी को भी सहन नही कर पाने वाला उपभोक्ता भारतीय समाज इसके लिए तैयार है?
एक प्रश्न अपने साथ हजारों प्रतिप्रश्न लेकर आया है।
यदि तुमने मोदी पर भरोसा किया था तो मोदी का भी तुमपर भरोसा है, तुम स्वयं को इस अवस्था के लिए तैयार करो, तुम्हे अपेक्षित परिणाम मिलेगा। अमेरिका की प्रतिव्यक्ति आय 55000 डॉलर है और भारत की 1500 डॉलर।
क्या तुमसब मिलकर यह तय नही कर सकते की हम अमेरिकी आय के दस प्रतिशत का लक्ष्य प्राप्त करें?
कल ही अमेरिका की टाइम पत्रिका में इयान ब्रेमर ने लिखा है कि चुनाव अंत नही होता, प्रारंभ होता है।
तुमने 2014 में अंधयुग की समाप्ति करके दायित्वों की इतिश्री कर ली तो यह पलायन है, दायित्व तो अब आया है।
जिससे तुमने सभी अपेक्षाएं जोड़ ली है उसे भी पता है कि प्रारंभ अपनी दिशा में नही चलेगा तो 2019 में एक अंत होगा। भारत के सांस्कृतिक विनाश की शुरुआत होगी।
खेल के अंतिम क्षण तक हारजीत का द्वंद चलता रहता है, अपने दल का साहस बढ़ाओ और उत्साहवर्धन करते रहो, सरकार को विरोधियों से अधिक विश्वासियों की चिंता है।
शव उसके पाँव छोड़ समय रूपी जल में विलीन हो गया और अघोरी ने अर्घ्य की अंजलि ऊपर उठा ली। पास ही कहीं एक अंजान स्वर गूंज रहा था…
“भूला है पड़ोसी अगर तो प्यार से कह दो,
लंपट है- लुटेरा है तो ललकार के कह दो,
जो मुंह से कही है वही तलवार से कह दो”
ब्यूरो चीफ
दिनेश सिंह
आजमगढ़