हमारी सबसे बड़ी बेफकूफ़ी…
क्या कोई पुत्र या पुत्री अपने माता पिता के सामान्य या माता पिता से बड़े हो सकते है…..?
यकीनन हमारा जवाब यही होगा, कभी नही। माता पिता का ऋण तो कभी कोई संतान चुका ही नही सकती है। यदि ऐसा है तो फिर हम ये कैसे सोच लेते है कि हम ईश्वर के सामान्य है या हम ईश्वर ही हो जाएंगे। माता पिता ने तो सिर्फ संयोग वश हमारे पाँच भौतिक देह को पैदा किया है। बाकी तो सब ईश्वर की बनाई प्रकीर्ति से ही हम बढ़ते है। तब भी हम अपने माता पिता की तुलना कभी नही कर सकते। तो जिस ईश्वर ने हमें और सारे जगत को उतपन्न किया है। हम कैसे उस ईश्वर के तुल्य हो सकते है। ये हमारी मूर्खता है कि हम स्वम को ईश्वर मान ले। और ईश्वर के बराबरी करे। गुरु भी कभी ईश्वर के सामान्य नही हो सकते। गुरु के माध्य्म से ईश्वर हमें मार्ग बतांते है। पर गुरु ईश्वर है ये हमारी भूल है। गुरु केवल ईश्वर से मिलाने का मार्ग है। गुरु को ईश्वर मान लेना और वही पर रुक जाना। आगे नही चलना। ईश्वरी प्राप्ति के लिए प्रयत्न नही करना ये गलत है। जो गुरु अपने शिष्यों को अपनी पूजा भक्ति करवाते है। स्वम ही ईश्वर बन जाते है। वह वास्तव में कभी अपने शिष्यों को उचित मार्ग पर नही ले जा पाते। ईश्वर की प्राप्ति तब तक नही होगी जब तक हमें किसी से भी मोह असक्ति कोई बन्धन रहेगा। गुरु का भी बन्धन नही हो। केवल ईश्वर का हो।
मीरां, गुरुनानक, आदि ये किसी गुरु के पीछे नही चले, सिर्फ सिर्फ ईश्वर की याद में रहे और अंत ईश्वर को प्राप्त भी किया। और देह के साथ ही मोक्ष को प्राप्त हुय। इस लिए ना स्वम हम ईश्वर है ना ही गुरु ईश्वर है। पाँच भौतिक देह में आने वाली प्रत्येक जीवआत्मा। सिर्फ ईश्वर का अंश है। वह ईश्वर नही है। ना ही ईश्वर के सामान्य ही है।
ईश्वर हमारे उद्गम है। हंमे ईश्वर का सानिध्य प्राप्त करना चाहिए। ना कि स्वम ही ईश्वर बन जाना चाहिए।
‼️🙌हरे कृष्णा🙌‼️